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भीखक बाती / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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महाराष्ट्र भेल धन्य पाबि जनिका, से संत महान
विदित समर्थ रामदासक अछि जपइत नाम जहान
शिवाजीक प्रेरणा - स्रोत हिन्दुत्बक जे अभिमान
शिक्षा हेतु छला से घुमइत एक दिवस अमलान
गृहिणी एक तखन घर निपइत छल, तत पहुँचल जाय
भिक्षा माङल रामदास, ‘जय राम समर्थ’ सुनाय
छलि तमसाहि बताहि जकाँ, गृह-स्वामिनि अति खिसिआय
फेकल हाथक गोबड़ौरक चेथड़ा मुह तका ठेकाय
भीख मानि ओकरे ‘समर्थ’ दय धन्यवाद घुरि गेल
धोय-पाखरि नदीमे चेथढेसँ बाती रचि लेल
पुनि आरती सजाय, देव-मन्दिर आलोक पसारि
माङल भीख देवतासँ, करुणामय वचन उचारि
‘हे हरि! जकर देल थिक बाती, आरतीक हित आइ
अन्धकारमय तकर हृदय - गृह, आलोकेँ भरि जाइ’
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सहसा ओही काल ओहि गृहिणिक उर जागल ज्ञान
दौड़लि रामदास - पद टेकय माथ, रहित अभिमान