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भीख माँगने में नाकाम होने के बाद / हेमन्त कुकरेती

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भीख माँगने में भी नाकाम होने के बाद
मैं दुनिया में गया
वहाँ कीड़े जैसी मौत मेरे इन्तज़ार में थी
इस तरह मरना मुझे बुरा नहीं लगा

नफ़रत है मुझे सख़्त उन लोगों से
जो हारे हुओं की मौत को समारोह में बदलकर यश कमाते हैं
ज़रा उनको देखो जिनका जीवन
ऐसे मरे हुए आदमी के कारण नरक हो गया
दोष इतना था कि वे उसके घर में रहते थे

कहकर मैं रुका तो देखा लोगों की तालियाँ जमी हुई हैं
एक हाथ में मौत और दूसरे में जीवन!
मृत्यु को इस तरह पिटवाने में मुझे ख़ूब आनन्द आया

ठीक तो ठहराना था मुझे अपनी मौत को

अच्छा तमाशा ख़त्म
बदबू उठने से पहले अपनी मिट्टी को उनसे बचाना है
जो इसमें अमरता ढूँढ़ने लगेंगे

मित्र!
तुम उनके कारण मारे गये
जो कहते थे तुम्हें पैसों की क ज़रूरत
तुम खाना तो खाते नहीं
कपड़े किसलिए चाहिए तुम्हें: जब घर तुम्हारा है नहीं

अभय!
उन्हें यह भी नहीं पता कि धरती पर रहनेवाला यह आदमी
आकाश देखता रहा
आग उगलता रहा
प्यास लगने पर पानी पीने को नहीं मिला समय पर
हवा खाकर जाने कैसे बेहया ज़िन्दगी जीता रहा

करुणा!
ये लोग वही होंगे
जिनके काम करते हुए इस आदमी ने अपने हाथ कटवा दिये