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भीगा भीगा मन डोल रहा / ममता किरण
Kavita Kosh से
भीगा-भीगा मन डोल रहा
इस आँगन से उस आँगन !
यादों की अंजुरी से फिसले
जाने कितने मीठे लम्हे
लम्हों में दादी नानी है
किस्सों की अजब कहानी है
उन गलियों में कितना कुछ है
मन खोज रहा है वो बचपन !
वो प्यारी तकरारें माँ से
वो झगड़े भाई बहनों के
उन झगड़ो का सोंधापन है
गूंजा गूंजा सा हर क्षण है
उन खट्टी मीठी यादों में
सुध बुध भूला है ये तन मन !
छुप छुप मिलने के वो मौके
लगते खुशबू के से झोंके
उन झोंकों में एक सिहरन है
मेहँदी का भी गीलापन है
उन मस्त हवाओं की सन सन
मन ढूँढ़ रहा है वो सावन !