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भीगी आँखें / निदा नवाज़

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शाम हुई और तारे
आकाश की टहनियों से
तड़प-तड़प कर गिरने लगे
मैंने अपने गगन के
चाँद को देखा
उसकी आँखें भीगी थीं।