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भीगी पलकें / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
मुस्कानों का दमन हो रहा।
भीगा भीगा चमन हो रहा।
मौत उगलती बन्दूके हैं
घायल घायल वतन हो रहा।
डाटर फादर डांस कर रहे
यह तो अभिनव चलन हो रहा।
मिली भूख से रोटी, जैसे
जीव ब्रह्म का मिलन हो रहा।
मेरा उर शिवधाम बना है
रूप तुम्हारा मदन हो रहा।
गुजर रही आँखों से आँखें
मधुर प्रेम संक्रमण हो रहा।
हँसते हँसते भीगी पलकें
कैसा भवोन्नयन हो रहा।
जीवन की सरिता पर विजयी
रेत उड़ाता पवन हो रहा
कौन सुने ‘सन्देश’ किसी के
सबका अपना भजन हो रहा।