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भीगे थे साथ साथ कभी जिस फुहार में / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
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भीगे थे साथ साथ कभी जिस फुहार में
ये उम्र कट रही है उसी के खुमार में।
तकते हैं खड़े दूर से सैलाब के मारे
मग़रूर नदी आयेगी कब तक उतार में।
मजबूर थी बिचारी दिहाड़ी की वजह से
आई तड़पता छोड़ के बच्चा बुखार में।
ये साज़ भी इंसानी हुनर की मिसाल हैं
संगीत उतर आता है लोहे के तार में
अपराध पल रहा है सियासत की गोद में
बच्चा बिगड़ने लगता है ज्यादा दुलार में।
फ़रियाद अगर रब ने तुम्हारी नहीं सुनी
कोई कमी तो होगी तुम्हारी पुकार में।