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भीग रहा है भुवि का आँगन / हरिवंशराय बच्चन
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भीग रहा है भुवि का आँगन।
भीग रहे हैं पल्लव के दल,
भीग रही हैं आनत ड़ालें,
भीगे तिनकों के खोतों में भीग रहे हैं पंक्षी अनमन।
भीग रहा है भुवि का आँगन।
भीग रही है महल-झोपड़ी,
सुख-सूखे में महलों वाले,
किंतु झोपड़ी के नीचे हैं भीगे कपड़े, भीगे लोचन।
भीग रहा है भुवि का आँगन।
बरस रहा है भू पर बादल,
बरस रहा है जग पर, सुख-दुख,
सब को अपना-अपना, कवि को,
सब का ही दुख, सब का ही सुख,
जग-जीवन के सुख-दुःखों से भीग रहा है कवि का तन-मन।
भीग रहा है भुवि का आँगन।