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भीजे दास कबीर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

नहा रही है नदी धूप में -
भीजे दास कबीर

जल डोले - नौका भी डोले
आँख हुई मछुआ
साँसों में आ बसी
किसी पुरखिन की नेह-दुआ

गूँजी शहनाई की धुन
जलपाखी हुआ अधीर

उधर घाट पर हाट नचावे
राजा सँग नाचे
नए वक़्त की उलटबासियाँ
कबिरा नित बाँचे

हितदय तो है उड़नखटोला
पाँव बँधी जंजीर

हाट-नदी के बीच खड़ा दिन
हमसे पूछ रहा
नदी-किनारे का बरगद भी
क्यों कल रात दहा

'राम-रमैया की माया है'
गावे रोज़ फ़क़ीर