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भीड़-भाड़ में / नईम
Kavita Kosh से
भीड़-भाड़ में माथे से माथा टकराना
सिर चकराना,
कभी--कभार हुआ करता है।
बावजूद चौकस दुरुस्त इन सावधानियों के,
टकरा जाते हैं हित-स्वारथ हवा-पानियों के;
अपने-अपने हाथों से चोटें सहलाना,
गुस्सा आना, कभी-कभार हुआ करता है।
इससे ज्यादा ख़तरनाक हो सकता है आगत,
अंधी प्रतिस्पर्द्धाएँ कर दें और बुरी हालत,
आत्मीय स्वजनों को भी पहचान न पाना-
सिर खुजलाना,
कभी-कभार हुआ करता है।
बारातों में विजातीय आ जाते कभी-कभी,
बिने-छने घर पके-पकाये दाल-भात में भी-
संबंधों का दाँतों के नीचे ककराना।
दोष गिनाना
कभी-कभार हुआ करता है।