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भीड़ का चेहरा / नूपुर अशोक
Kavita Kosh से
भीड़ के बीच टहलता है
गुमनाम अकेलापन
भीड़ के शोर में
घुलमिल जाते हैं
बेनाम बेपहचान चेहरे।
कागज़ पर छिटकी
स्याही के धब्बों की तरह
दिखते तो हैं
पर पहचाने नहीं जाते।