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भीड़ बुलाएँ, उठो मदारी / प्रदीप कान्त
Kavita Kosh से
भीड़ बुलाएँ, उठो मदारी
खेल दिखाएँ, उठो मदारी
खाली पेट जमूरा सोया
चाँद उगाएँ, उठो मदारी
रिक्त हथेली नई पहेली
फिर सुलझाएँ, उठो मदारी
अन्त सुखद होता है दुख का
हम समझाएँ, उठो मदारी
देख कबीरा भी हँसता अब
किसे रूलाएँ, उठो मदारी