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भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है / तारा सिंह

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भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है

दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है


मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है

फिर भी कोई चीज गुमी सी लगती है


शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों , छन्दों के

गजल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है


रिश्ता क्या है नहीं जानती मै तुमसे

तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है


सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूता कोई शै

बिना तुम्हारे बीरानी सी लगती है


चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद

मुझको 'तारा' दीवानी सी लगती है