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भीतरी कोहबर रब से छड़ाएब / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में पति के लिए सेॅदूर से थाली के मलने और दूध से पखारने तथा भोजन में अमृत देकर खिलाने का उल्लेख हुआ है। प्रथम मिलन में पत्नी का आँचल से मुँह ढँक लेना भी स्वाभाविक ही है। इस गीत में पतिपरायणा पत्नी का उत्कृष्ट चित्र वर्णित है। वह अपने प्यारे पति के लिए कष्ट उठाने तथा उतमोत्तम चीजों को एकत्रित करने के लिए प्रस्तुत है।

भीतरी कोहबर रब<ref>दाना; बालू</ref> सेॅ छड़ाएब<ref>छवाऊँगा</ref>, बाहरी कोहबर बेंत सेॅ मोढ़ायब हे।
ओहि कोहबर सूते गेली कनेया सोहबी, पटोरे मुँह झाँपी हे॥1॥
घूमल घामल आबे दुलहा बाबू, केबरिया लागि ठाढ़ भेल हे।
खोलू धानि बजर केबार, चूरि<ref>एक चुल्लू</ref> एक जल पिआयब हे॥2॥
कथि लै थार<ref>बड़ी थाली</ref> मलायब, कथि लै पखारब हे।
कथिअहिं परोसि के प्रेम सेॅ, दुलहा बाबू जिमायब हे॥3॥
सेनुर लै थार मलायब, दूधे पखारब हे।
अमरित दै भोजन परोसी के, दुलहा बाबू जिमायब हे॥4॥

शब्दार्थ
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