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भीतर का सच / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
भाभी के गुजरने के बाद
पहली बार आए हैं भैया,
'चिंता मत करी तू,
अब तो आता-जाता ही रहूंगा
आजाद जो हो गया हूँ,
बिलकुल आजाद!'
कहते हुए खिलखिला पड़ते हैं भैया।
और मैं देखता हूँ-
तमाम कोशिशों के बावजूद
भैया की आँखों में
उभर आई चमक के पीछे
झिलमिलाने लगती है
एक नदी।
2000