भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भीतर की दुनिया / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
मेरे भीतर जो दुनिया है
उसे कोई नहीं जान सकता
तुम उसमें मेरे साथ हो
मेरे हिसाब से
हँसते हो मेरे लिए
गुनगुनाते मेरे लिए
तुम्हारा प्यार और मनुहार
बस है मेरे लिए
बाहर की दुनिया
नहीं सह सकती
मेरे भीतर की दुनिया