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भीतर से बाहर ही चलो / नईम
Kavita Kosh से
भीतर से बाहर ही चलो-
चले टहलें,
पतझर बगूलों में
(एक दूसरे को
कुछ देर और सह लें)
यूँ तो संवाद चुक गए-से हैं
एक-दूसरे को नए-से हैं;
हो लें निःशेष
सभी कह लें।
अपने-अपने में रह सकते हैं,
बोलें तो खुद से कह सकते हैं।
शाम: एक नदी
उमस मिटे
संग-संग बह लें।
चलो चलें
हरी घास पर क्षणभर टहलें।
तीसरा नहीं कोई
हो तो हो।
एक नहीं हो पाएँ
तो भी दो-
एक-दूसरे को
कुछ देर और सह लें।