भीती से बाहर भेला, गहुमन साँप / अंगिका लोकगीत
शिवजी के गले के साँप को देखकर उनकी सास का घबराना और शिवजी का उन्हें सांत्वना देना स्वाभाविक है। फिर, शिवजी ने अपनी सौभाग्यवती पत्नी की इच्छा जानने का प्रयत्न किया। उन्होंने डूमर का फूल और बाघिन के दूध की इच्छा जाहिर की। इन चीजों के नहीं मिलने की सूचना उन्होंने अपनी पत्नी गौरा को दी। इन चीजों के उपयोग के विषय में प्रश्न पूछने पर बताया गया कि दूध को अंग में लगायेगी तथा फूल बिछावन पर छितराया जायगा। भगवान शंकर के लिए क्या ये चीजें अप्राप्य रहेंगी?
इस गीत में पत्नी द्वारा पति के पौरुष और उद्यम की परीक्षा लेने का संकेत किया गया है।
भीती<ref>दीवार, भित्ति</ref> सेॅ बाहर भेला, गहुमन साँप।
ओहि देखि आहे सासु गेली हे डेराय॥1॥
तोरा लेखे<ref>लिए</ref> आहे सासु, गहुमन हे साँप।
मोरा लेखे आहे सासु, सीरी बैजनाथ॥2॥
किए किए लेबे गे सोहबी, किए किए करबे।
एक मन होय छै<ref>होता है</ref> हे परभु, डुमरि के<ref>गूलर का फूल, जो अप्राप्य समझा जाता है</ref> फूल॥3॥
एक मन होए छै हे परभु, बाघिनि के<ref>बाघिन का</ref> दूध।
सात दिन सात हो राति, बन खंड ओगरलऊँ<ref>निवास किया; ठहरा</ref>॥4॥
कतहुँ न पैलऊँ गे सोहबी, बाघिनि के दूध।
कतहुँ न पैलऊँ गे सोहबी, डुमरि के फूल॥5॥
किए किए करबै गे धनि, बाघिनि के दूध।
किए किए करबै गे धनि, डुमरि के फूल॥6॥
अँग में लगैबै हे परभु, बाघिनि के दूध।
सेज में छिरिऐबै हे परभु, डुमरि के फूल॥7॥