भीमबेटका / लीना मल्होत्रा
कभी भीमबेटका गए हैं आप
इन गुफ़ाओं के अँधेरे
रहस्य की चादर ओढ़े आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं
बस एक ही क़दम दूर रखे हैं यहाँ दस लाख वर्ष
गाईड चन्द्रशेखर दिखाता है कई चित्र लाल और सफ़ेद रंगों के
एक हिरन जीवन और मृत्यु के सन्धि पल पर टिका पीछे मुड़ कर देख रहा है दस लाख वर्ष से
एक आदमी हाथ में भाला लिए अपने शिकार का पीछा कर रहा है
एक घोड़ा अपनी दोनों टाँगे हवा में उठाए अगली सभ्यता में छलाँग लगाने को आतुर है
कुछ लोग
दस लाख वर्ष से
त्रिभुजाकार उदर लिए मृदँग और ढोलक पर भूख का उत्सव मना रहे हैं
दस लाख वर्ष बाद
कुछ पर्यटक अचम्भे की आँखे फाड़े उस पीड़ा को ढूँढ़ रहे हैं
जिसके रंग में कूची डुबो चित्रकार ने भविष्य का ऐसा चित्र बनाया
जो कभी अतीत नहीं हुआ
इन्हीं पर्यटकों में मैं भी शामिल हूँ
चन्द्रशेखर गाईड कहता है यहाँ से देखिए खुला हुआ बाघ का जबड़ा
जबड़े के भीतर बने चित्र
मैं देखती हूँ वह बाघ के जबड़े में टिकी निडर सभ्यता को
जो अपने सहजीवियों के साथ सन्तुलन की मुद्रा में थम गई है
एक कुछआ है क्षितिज के पार कुछ खोजता हुआ
एक स्त्री की आकृति है
जिसके धड़ पर सर रखा है
जो ज़रा सा हिलते ही टूट कर गिर पड़ेगा
मुझे लगता है ये हठयोगी हैं
अपने तप में लीन
कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए
इन गुफ़ाओं की दीवारों पर कुछ प्यालेनुमा गड्ढे हैं
गाईड बताता है यह अव्नल हैं इन्हें हवा और पानी ने काट कर बनाया है
तभी अव्न्लो में बसी बूढ़ी पीड़ा अपनी आँखे खोले देती है
उसकी पीड़ा में अपनों से ही आघात पाने का मर्म है
जो उसे दस लाख वर्ष से जीवित रखे हुए है
एक रिक्त सभा-कक्ष है
जिसके मध्य में एक ऊँचा पत्थर रखा है
चन्द्रशेखर कहता है यह राजा के बैठने का स्थान था
सम्भवत: यहीं पर बैठकर राजा अपनी सेनाओं को निर्देश देता था
बैठिए बैठ कर देखिए
मैं उस दस लाख वर्ष पुराने पत्थर पर बैठता हूँ
और क्षण भर में सत्तावान बन जाता हूँ
मेरे सामने अब अक्षोहिनी सेना है
जिसे मैं कहता हूँ
जाओ द्रौपदी को केश से पकड़ घसीटते हुए लाओ
लाओ, इसे सभा-कक्ष में नंगा कर दो
जाओ, इशरत जहाँ को मार कर उसके शव के हाथ में बन्दूक रख दो
जाओ
नकली को असली बना दो असली को नकली
जाओ
सीरिया के तेल के नीचे दबे जैविक हथियार नष्ट कर दो
इन हथियारों ने उनके 400 बच्चों को मार डाला
जाओ, शेष पर तुम अपने हथियारों का परीक्षण करो
मेरी बड़बड़ाहट सुनकर चन्द्रशेखर मुझे झिंझोड़ता है
मैं हड़बड़ा कर अपने सत्तावान होने पर शर्मिन्दगी से उठ खड़ा होता हूँ
आते आते मेरी नज़र एक फूलदान के चित्र पर पड़ती है
जिसमे से एक फूल दस लाख वर्ष से सजा हुआ झाँक रहा है
और मुरझाया नहीं है