भीमराव का दलित नहीं यह गान्धीजी का हरिजन है / सूरजपाल चौहान
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।
रोज़ सवेरे मन्दिर जाता
रखता है मँगल उपवास
शनीदेव की करे अर्चना
बेटा इसका रामनिवास
जय जगदीश हरे आँगन में
घर में इसके कीर्तन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
धर्म दूसरों का ढोता है
नँगे पाँव भगा-फिरता
चुल्लू भर पानी की खातिर
यहाँ वहाँ गिरता-पड़ता
काँवड़िया बनकर करे ग़ुलामी
अक़ल से भी यह निर्धन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
मीटर लम्बा तिलक भाल पर
सुतली डोर गले डाले
हाथ कलावा बान्धे फिरता
मटरू का पोता काले
इसके आगे शरमाता अब
पण्डित रामचरण है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
इसको तो कुछ पता नहीं है
स्कूल, कॉलेज क्या होता
देसी-थैली डाल हलक में
दिन भर गफ़लत में रहता
बालक इसके अनपढ़ रह गए
ज्ञान का ख़ाली बर्तन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है।।
अम्मा इसकी अमरनाथ में
मर गई पत्थर के नीचे
बर्फ़ में दबकर बाप मरा है
मानसरोवर के बीचे
वैष्णो देवी भइया खोया
आया इस पर दुर्दिन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
पढ़ -लिखकर धोखा देता है
धूर्त बना मक्कार है
आरक्षण लेता बढ़-बढ़कर
कोठी, बँगला, कार है
अपनी जाति छिपाकर रहता
बेटा इसका सर्जन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
सच्ची बात बताता इसको
उसी को आँख दिखाता है
भगवा-रँग में सराबोर यह
गीत राम के गाता है
हिन्दू-मुस्लिम के झगड़े में
सबसे आगे यही जन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
दलित-साहित्य तनिक न भाता
मौलिक चिन्तन से ना प्यार
वर्ण-व्यवस्था ये ना जाने
लिख-लिख करके गया मैं हार
पोंगा-पण्डित को पढ़ता है
जिसका झूठा दर्शन है
भीमराव का दलित नहीं यह
गान्धीजी का हरिजन है ।।
जुल्म इसकी कौम पे होते दिन-रात
ये जात छुपा बैठा मन्दिर सत्सँग में
कर रहा अपने पूर्वजों के हत्यारों की पूजा
जिनसे बचना है ये उन्हीं के सँग-सँग में
इसीलिए बाबा साहब कह गए बार बार
जुल्म करने वाले से सहने वाला ज़्यादा है गुनहगार
मुझे मेरे पढ़े लिखों ने
धोखा दिया रात-दिन है
भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये
हिन्दू दलित/हरिजन है ।।