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भीषण आग छुपी है कोई‚ जहाँ एक चिंगारी में / हरेराम समीप

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भीषण आग छुपी है कोई‚ जहाँ एक चिंगारी में
ठीक वहीं पर हवा व्यस्त है‚ तूफ़ाँ की तैयारी में

सागर के भीतर की लहरें अक्सर बतला देती हैं
कुंठा का रस्ता खुलता है हिन्सा की ओसारी में

जब से महानगर में आया‚ आकर ऐसा उलझा मैं
भूल गया हूँ घर ही अपना‚ घर की ज़िम्मेदारी में

अपने छोटे होते कपड़े बच्चों को पहनाऊँ मैं
तह करके रक्खे जो मैंने आँखों की अलमारी में

तेरहवीं के दिन बेटों के बीच बहस बस इतनी थी
किसने कितने खर्च किए हैं अम्मा की बीमारी में

इससे बेहतर काम नहीं है इस अकाल के मौसम में
आओ मिलकर ख़ुशबू खोजें काँटों वाली क्यारी में