भीषण सुन्दरता (कविता का अंश)
जहां पहाड़ो में पिचकी सरिता रोबीली
गरल उगलती है मुख से, पत्थर पर टकरा
रजनी में बेसुध क्यों हो जाता है जीवन
आता है वह कौन
प्रिया के केश खेालने
इस सेायी धरती के यौवन की माया में
अन्धकार में चुपके चुपकेे प्रेम स्वप्न सा
(भीषण सुन्दरता कविता से )