भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भीष्म-द्रोपदी संवाद / विश्राम राठोड़
Kavita Kosh से
बुद्ध अगर मौन थे, भीष्म आप क्यों मौन थे
कौरव अगर अपने हैं तो, पाडंव कौन थे
कुलवधु की चित्कार, धरती पर छा गई
नि:शब्द रहे सब लोग, यह जुबां कहाँ गई
हर शब्द में पुकार, करूणा की त्रासदी आ गई
अग्नि परीक्षा में सीता, पासों में आज फिर द्रौपदी आ गई
मन व्यथित हुआ मेरा आज, यह कैसी कहानी हुई
भीष्म तो आज भी है, फिर यह कैसी जवानी गई
भीष्म तोड़ दे प्रतिज्ञा पांचाली आई है
किसी की कुल वधु, किसी की बेटी आज फिर झोली फैलाई है
शस्त्र नहीं उठा सकता तो समाधि तैयार कर
ये तरकश भी मुझे दे दे, यह तन तु संभाल कर
सौदामनी में संवेदना अब ना चलेगी
दुर्गा, भवानी अब चामुण्डा बनेगी
दुशासनो, दुर्जनों का यही हाल होगा
ना तो कभी सीता परीक्षा, ना द्रोपदी का परिहास होगा