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भुइयाँ गिरे नंदलाल, गोपाल लाल भुइयाँ गिरे / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भुइयाँ<ref>जमीन पर</ref> गिरे नंदलाल, गोपाल लाल भुइयाँ गिरे॥1॥
काहे के छूरी से नार कटयलूँ,<ref>कटवाया</ref> अब काहे के झारि नहलयूलूँ<ref>नहलाया, स्नान कराया</ref>॥2॥
काहे के पलना में लाल सुतयलूँ, काहे के डोरी डोलयलूँ।
सोने के पलना में लाल सुतयलूँ, रेसम के डोरी डोलयलूँ॥3॥
काहे के कटोरा में दूध भरयलूँ, अब काहे के सितुए<ref>सितुहा। बड़े आकार वाली एक प्रकार की सीपी</ref> पिलयलूँ<ref>पिलाया</ref>।
सोने कटोरी में दूध भरयलूँ, अब रूपे के सितुए पिलयलूँ॥4॥
शब्दार्थ
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