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भुगतान / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
वह दरकी हुई ज़मीन में
बोता है बीज
संभावनाओं के, अरमानों के
वह रोज़ मर जाता है
खुद नहीं मरता तो
वक्त के हाथों
मार दिया जाता है
फिर कानून
अपनी भूमिका निभाता है
उसके मृत शरीर की
होती है चीर फाड़
जानना चाहता है कानून
कैसे मरा वह?
यह नहीं कि क्यों मरा?
कानून को नहीं दिखाई देती
कर्ज के बोझ से लदी
उसकी छटपटाहट
आहत उम्मीदें
नहीं दिखाई देती
खाली खलिहानों में पसरी भूख
और एक ग़लत
वोट का भुगतान