तिमिर का रंध्र है मेरा बसेरा
तिमिर से पोछ वपु झलका रही हूं
भुजाओं में मुझे लो बांध, आओ
अदेखा रूप-रस छलका रही हूं
लुटाती हूं अतुल सौंदर्य शोभा
लुटाती हूं अतुल सौभाग्य, रति हूं
भुजंगों से घिरी हूं, मैं नियति हूं
तिमिर के फूल मैं जिस ठौर चुनती
वहीं प्रतिनिमिष पल संसार बनता
तिमिर में मैं जहां सांसें संजोती
वहीं आकृति, वहीं आकार बनता
नया सूरज उगा दूं रक्त-सींचा
पुकारो तुम कि मैं छंदानुगति हूं