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भुलाए उनको तो बरसों बीते फिर आज तक दिल फ़िगार क्यों है / उदय कामत
Kavita Kosh से
भुलाए उनको तो बरसों बीते फिर आज तक दिल फ़िगार क्यों है
न आएंगे वो, तुम्हें भला बेक़रारी से इंतिज़ार क्यों है
भुला चुके जब मुहब्बतों को, क़राबतों को, मसाफ़तों को
तो सजदे में भी ज़ुबान पर आता नाम वह बारबार क्यों है
था वह नशा उनकी आँखों में या वह ज़ाइक़ा उनके होटों का था
कि मयकदों की तमाम बादा से अब न मिलता ख़ुमार क्यों है
ये ज़ख्म दिल के छुपाता आया है झूटी मुस्कान से तू 'मयकश'
फिर आज भी लिखता शेर अहद-ए-वफ़ा पर तू बेशुमार क्यों है