भुळावण / चंद्रप्रकाश देवल
नित उठ झांझरकै गाई परभाती 
घट्टी ओरतां उगेरियो हरजस 
बिलोवणौ करती मखणूड़ौ
इण बिचाळै 
होठां ई होठां गुणमुणावती अेक नांव 
सिरावण सूं बेपारा रौ टैम खोड़व्यौ 
तीजै पोरां री पोळाई में 
तरकारी लेय‘र बैठी 
जांणै सुमरणी व्है हाथां 
चूंटतां, डांखळै-डांखळै ओळग्यौ थनै। 
सिंझ्या-बाती री झालर बाजगी 
गांव रौ सांपौ कांकड़ सूं चर बावड़ग्यौ 
बिचियौ ई आवणौ बाकी नीं रह्यौ 
खाडा-खोचरां पेट भर अेवड़ ई आयग्यौ 
वांरै गळा री टोकर रै टरणाटै 
नीं सुणीज्या सैंधा पग 
सगळा सैंधा तारा 
आपौआप री ठौड़ हाजर 
अेक ई ऊगण में नीं छूट्यौ
सयन आरती री वेळा 
आरती रै छेहलै बोलां गळौ भरीजग्यौ 
कांईं निरमोयला 
हाल ईं थनै हिचकी नीं आई 
पांणी पीवतां अेकर ई अळसूंद नीं आई 
ठालाभूला, 
किणी दूजै ग्रह माथै बसै कांई?
रातीजगौ किणनै कैवै 
सावळ नीं जांणू
बस, जपती रैवूं अजपौ जाप 
जे नीं झपकावूं आंख 
तौ सपना सूं छेती पडूं
फेर भखावटौ तौ त्यार 
पाछौ सागण बगत 
दिन घड़ी मास 
लुगायां री अेक री अेक बात
‘थूं अणूंती नितनेमी
इस्ट री पाकी, ध्यावना री पाकी 
वैवांण आवैला हथीकी’ 
जांणमूळ! इण बिचाळै 
अेकर तो आय जाजै 
म्हारी भगती अकारथ नीं जावै ज्यूं 
भगवांन सूं छांनै और कांईं भुळावण दूं?
	
	