Last modified on 15 अगस्त 2013, at 13:37

भूकम्पी हिण्डोला / प्रांजल धर

स्वार्थ का
ख़तरनाक
भूकम्पी हिण्डोला
झकझोरता
भीतरी संसार को
हो जाता तबाह
भीतरी अफ़सानानिगार
चुक जाती क़िस्सागोई
खो जाती कहानी,
सिकुड़ता
आत्मा का आयतन
विचारों का ब्रह्माण्ड
और क्षीरसागर
सहज मानवीय इच्छाओं का;
समा जाती
इन्तज़ार की क्षीणकाय नदी
किसी भव्य रेगिस्तान में
कुछ ही दूर चलकर...।