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भूकम्पी हिण्डोला / प्रांजल धर
Kavita Kosh से
स्वार्थ का
ख़तरनाक
भूकम्पी हिण्डोला
झकझोरता
भीतरी संसार को
हो जाता तबाह
भीतरी अफ़सानानिगार
चुक जाती क़िस्सागोई
खो जाती कहानी,
सिकुड़ता
आत्मा का आयतन
विचारों का ब्रह्माण्ड
और क्षीरसागर
सहज मानवीय इच्छाओं का;
समा जाती
इन्तज़ार की क्षीणकाय नदी
किसी भव्य रेगिस्तान में
कुछ ही दूर चलकर...।