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भूकम्प / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
माँ धरती क्यों डोल रही थी
धूर धूर करती बोल रही थी
इसके ऊपर हम रहते हैं
कूद फांद करते रहते हैं
सह लेती थी हर शैतानी
कभी न इसने भौंहें तानी
अब क्यों ऐसे डोल रही थी
माँ धरती क्यों डोल रही थीं
क्या पहाड़ का बोझ बढ़ गया
क्या समुद्र का नाप बढ़ गया
बोलो माँ क्या हुआ इसे था
गुस्सा आया व्यर्थ इसे था
दु; ख में सबको घोल रही थी
माँ धरती क्यों डोल रही थी
लोग मर गये इतने सारे
कुछ रोते रह गये बिचारे
घर भी टूट चुके हैं सारे
बिछुड़ गये आफत के मारे
क्यों ऐसा विष घोल रही थी
माँ धरती क्यों डोल रही थी।