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भूकम्प : कुछ कविताएँ-3 / सुधीर सक्सेना

जहाँपनाह!

मौत ने

कब किस से

मांगी है पनाह


कि वो आए तो

आपको बताकर आए

एक ही रास्ता है

कहर से बचने का


कि छेंक दें उसके

आने के सारे रास्ते

और खिलवाड़ न करें

धरती की नेमतों से


अन्यथा वह फिर-फिर आएगी


मगर,

बताओ तो चित्रगुप्त!

किसके खाते में लिखोगे

यह गुनाह

कि जलजला आया

और मारे गए हज़ारों बेगुनाह?