भूखे बच्चों के सप्ताह में / आर. चेतनक्रांति
वह भूखे बच्चों का हफ़्ता था
जैसे कहा करते हैं
कि फलाँ साल दुर्घटनाओं का था
या जैसे कोई दिन सुन्दर लड़कियों का होता है
कि सुबह घर से निकले तो एक दिखी
और फिर शाम तक जब भी कहीं से पिटकर निकले
बाहर खड़ी एक मिली
वे लोग
–जैसाकि दफ्तर जाते हुए लोग उन्हें कहा करते हैं
पूरे सप्ताह मुझे यहाँ-वहाँ मिलते रहे
अर्थशास्त्र पर लेक्चर सुनकर निकला
तो बाहर एक खड़ा था
साम्प्रदायिकता पर नाटक देखकर बाहर आया
तो एक खड़ा दिखा
बस से उतरा और दफ्तर की तरफ़ चार क़दम चला
तो देखा एक पीछे-पीछे आ रहा है
जैसे कोई आवाज़ हो
दुकान में गया
और जब बाहर आया तो देखा एक खम्भे से लगा खड़ा था
मुझे ऐसे देख रहा था
जैसे वह पुलिस हो, मैं चोर
शनिवार को अम्बेडकर पार्क गया
जहाँ हिन्दू युवकों को लाठी सिखाई जाती है
और जब झुटपुटा गिरे निकला
तो देखा दीवार से सटे दो बैठे हैं
मुझे देखकर कसमसाए
जैसे मैं नरेन्द्र मोदी और वे मुसलमान हों
मैं क्या कर सकता था
यह हफ्ता ही दरअसल उनका था
जैसे यू० एन० ओ० बच्चों के दिन और साल मनाती है
ऐसे ही भूखे बच्चों की भी कोई यू०एन०ओ० होगी
आगे इतवार था
उस दिन भी एक दिखा
कड़ाके की सर्दी में सिर्फ़ कच्छा पहने था
और एक ख़ुशपोश आदमी को नंगा करने पर लगा हुआ था
मैंने टोका तो बोला
मेरे थे पाँच रुपए। गिर गए थे। इन्होंने उठा लिए। दिलवाओ
आदमी बोला -- भाई साहब
आप जानते नहीं इन्हें। ये लोग ऐसे ही करते हैं
मैं सुन ही रहा था
कि वह सुनकर लौट पड़ा
मैंने उसे कोहरे में जाते देखा
जैसे सिल की बेकारी से ऊबकर बट्टा जा रहा हो
चुप ही रहते हुए मैंने सोचा
हो सकता है सचमुच अब ये ऐसे ही करने लगे हों। फिर सोचा
हो सकता है अगला हफ्ता इनके ऐसे करने का हो।