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भूख-भर आटा न था बस / पुरुषोत्तम प्रतीक

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भूख-भर आटा न था बस
और कुछ घाटा न था बस

थे अँधेरे थे उजाले
ठीक से बाँटा न था बस

गाल थे मजबूरियों के
हाथ ही चाँटा न था बस

खाइयों की थी रियासत
एक भी पाटा न था बस

नोच डाले पंख सारे
सिर अभी काटा न था बस