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भूख की मार / रामकृपाल गुप्ता
Kavita Kosh से
छोड़ दे सारे भय
अरे दयावान ज़रा आगे आ
डाल दे मेरे गले में फन्द फाँसी के
और लटका दे किसी पेड़ की डाली पर
कि मर जाऊँ।
शत-शत आशीष तुझे दे जाऊँ।
कायर हँ ख़ुद मर पाता नहीं
ऐसा कर्म ख़ुद कर पाता नहीं
जहर कहाँ पाऊँ जेब खालीहैं
गढे़ भी नहीं हैं बस नल है और नाली है।
बस कर रहम करअरे दाता
अब और सहा नहीं जाता है
तेरी दो रोटी खा बेशरम पेट
और-और कुलबुलाता है।
तेरे मापदण्ड पर
हाथ-पाँव चल नहीं पातें हैं
कितनी भी गाली दो अड़ियल से
बैठ-बैठ जाते हैं।
फिर तू कैसे दो की चार देगा
कैसे बेगैरत की नैया उबार लेगा
डुबो दे डुबो दे ओ दयावान
तिल तिल गल जाने से अच्छा है
अतुल के अंक में पिघल जाऊ़ँ
जीवन भर गलना की ढलना जब
छुट्टीहो जल्दी ही ढल जाऊँ।