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भूख के बच्चे / सुभाष राय
Kavita Kosh से
कचरे से प्लास्टिक बीनती
पारो झुक गई थी जवानी में ही
सूरज सातवाँ बच्चा था उसका
जन्मते ही लुढ़क गया था धूल में
नहीं जानती बाक़ी छह कहाँ हैं, हैं भी या नहीं
सूरज को भी रोक पाएगी, पता नहीं
भूख की आग में जलकर
भस्म हो गई है उसकी ममता
निचुड़ गया है उसका मातृत्व
यह सूरज आख़िरी नहीं होगा उसकी कोख से
अब मौत के साथ ही ख़त्म होगा यह सिलसिला