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भूख से कोई नहीं मरता / चंद्रभूषण

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इस देश में भूख से कोई नहीं मरता

कालाहांडी, पलामू , यवतमाल

और दीगर जिलों के आदिवासी

मरते हैं सड़ा-गला खाना

या जहरीली गेंठी खाकर

ऐसी ही ऊलजलूल

उनकी आदतें हैं, रिवाज हैं

खाने को अनाज नहीं है तो क्या

जो मिलेगा वही खा लेंगे?


यहां दिल्ली में मरते हैं डिप्रेशन

और दूसरी दिमागी खामियों से

इस शहर में भीख मांगने पर

कानूनी रोक है, फिर भी

कालकाजी की वे तीनों लड़कियां

पड़ोसियों को अपनी मजबूरी बतातीं

तो कुछ न कुछ पा ही जातीं

भूख से उन्हें कोई मरने थोड़े देता!


पलामू के लेस्लीगंज ब्लॉक में

भूख से मरे चौदह लोगों के घर में

कई दिनों से एक दाना नहीं था

तीन साल के सूखे ने

कहीं से मजूरी मिलने का

आगम भी नहीं छोड़ा था

गांव के गांव रिक्शा चलाने गये

तो डाल्टनगंज में रिक्शे नहीं बचे

ऐंठता पेट लिए लौटे

पानी पिया और मर गए


इसपर उठे हल्ले को

पिछड़ा नेतृत्व के विरुद्ध

ऊंची जातियों की साजिश

और मौतों को भूख नहीं

बीमारी का नतीजा बताते

झारखंड के मंत्री मधु सिंह को

एक आध्यात्मिक चुनावी जलसे में

सीधी बातचीत के दौरान

आमने-सामने बैठकर मैंने सुना है


संसद से लेकर सड़क तक

मीडिया से लेकर एनजीओ तक

भूख से मौत की अनेक व्याख्याएं हैं

सबका निचोड़ मगर यह है कि

इन्सान और चाहे जैसे भी मर जाए

भूख से तो नहीं मर सकता

...भारत में तो बिल्कुल नहीं

जो कुछ ही सालों में अमेरिका से

आगे निकल जाने वाला है