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भूख / नरेन्द्र कठैत
Kavita Kosh से
घाम मा मन
काम नि कन चांद
टुप्प छैल/ बैठ जांद
बरखा मा
हिलू-किचू देखी
वेकि गात / झझरांद
ठण्ड उथगा
ठण्डी नि रांद
जथगा ऐड़ी/ वेका प्वटगा बैठ जांद
पर इन नि
कि वेकी जिद्यूंन्
काम /रुक जांद
भूख वे तैं
जब भैर खैंची लांद
त घाम-बरखा-ठण्डे/ परबा कख रै जांद।