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भूख / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
तेज रफ़्तार ज़िन्दगी में
खाए थे जो फैट्स फ्री छोले-कुलचे
उसका खाली पत्तल मैंने सड़क पर नहीं फैंका
सभ्य हूँ सड़क पर कूड़ा नहीं फैंकती
लेकिन भर दिया किसी की आँखों में
उसकी उम्मीद के हाथों को खाली करके
उसके चेहरे के कैनवास पर पुत गया उदास रंग
उसकी आँखों के उजले गहरे आकाश में
अभी अभी उगा सूरज डूब गया
गहरा काला धब्बा मात्र रह गया वहाँ
उसके चेहरे पर
झुर्रियों दर झुर्रियों के बीच
कुछ और स्याह हो गईं रेखाएं
उसकी भूख व्याप गई सभी दिशाओं में
कुछ और बूढ़ा हो गया वह
कुछ और बड़ी हो गई उसकी आकृति
और मैं
कुछ और छोटी हो गई