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भूख / राजेन्द्रसिंह चारण
Kavita Kosh से
जाग्यां बदली
जाग्यां रै सागै लोग बदळया
लोगां री सोच बदळी
सोच ज्यूं टैम बदळयो
पण फिरयो कोनी
इयांस सब बदळया
सब रा रब बदळया
ईं बदळाव में
नीं बदळी तो खाली
रोटी री तस्वीर
पेट री भूख
भूख मिटावण री
भागमभाग।