भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूख : पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
भूख टिरै
टाबर रै मुंडै
जकी नै जाणैं
फगत मा
टाबर नीं जाणै
पेट री भूख
मा री मैक
टाबरी री भूख
मा रो परस
भूख री मुगती!