भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूचाल / शशि सहगल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अख़बार की सुर्ख़ियों में छपता है भूचाल
कभी देश और कभी विदेश में
सरकारी, ग़ैरसरकारी धरातल पर
होती है पुष्टि हताहतों की संख्या की
बेघर लोगों की हालत की
विश्व के देशों से
मांगी जाती है सहायता
सब सच है।
पर आपने ज़रूर महसूस किया होगा
एक भूचाल आता है
आपके अंदर भी
हिला जाता है समूचा अस्तित्व
रिक्टर के पैमाने पर
नहीं आँकी जाती उसकी तीव्रता
चाहे आप पूरे के पूरे ध्वस्त क्यों न हो जायें
धज्जियाँ उड़ जायें समूचे व्यक्तित्व की
तो भी
कहीं होता नहीं ज़िक्र
छपती नहीं ख़बर
छपना तो छोड़िये
किसी को कानों-कान पता भी नहीं चलता
आप कब धराशायी हुए।
हैरानी तो इस बात की है
कि नेस्तोनाबूद होने के बाद भी
फिर खड़े हो जाते हैं आप
अगले झटके के लिए।