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भूत कविता के भयंकर ई भगाबे लेॅ पड़ेॅ / अमरेन्द्र

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भूत कविता के भयंकर ई भगाबे लेॅ पड़ेॅ
लागै छै हमरा गजल आबेॅ सुनाबै लेॅ पड़ेॅ
हमरोॅ परती के बिरुद्ध मेघे नें कुछ सोचलेॅ छै
खेत जोतै लेॅ लहू-आँसू बहाबै लेॅ पड़ेॅ
नीति लिखला सें यहाँ पेट केकरोॅ भरलोॅ छै
हमरौ चैता कभी, पूर्वी कभी गाबै लेॅ पड़ेॅ
खूनी बैठलोॅ छै ठामेठाम घात लै लै केॅ
कत्तेॅ दिन जिनगी लेलेॅ हमरा नुकाबै लेॅ पड़ेॅ
तोहें बोलै छोॅ हरिश्चन्द के नाटक खेलोॅ
लोगोॅ के मांग छै नौटंकी दिखाबै लेॅ पड़ेॅ
जी में ठानलेॅ छियै ‘ऊ चेहरा’ खोजी लै लै के
आबेॅ जिनगी भरी हेनै केॅ बौआबै लेॅ पड़ेॅ