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भूत सी भयावनी भुजँग सी पयावनी औ / गोविन्द

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भूत सी भयावनी भुजँग सी पयावनी औ ,
चूल्हे की सी लावनी ज्योँ नील मे रँगाई है ।
हाथी कैसे खाल बूढ़े भालू कैसे बाल ,
मनो बिधि ते बिधाता आबनूस की बनाई है ।
चौदस अमावस सी अधिक लसति स्याम ,
कहै कवि गोविँद ज्योँ हबसी की जाई है ।
तबा तिमिराबली मसी तैँ महा कालिमा तू ,
ऎसो रूप सुँदर कहाँ ते लूटि लाई है ।


गोविन्द का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।