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भूमण्डलीकरण के अश्व पर सवार होकर घृणा / दिनकर कुमार
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भूमंडलीकरण के अश्व पर सवार होकर घृणा
नगर-नगर गाँव-गाँव घूमती-फिरती है
रिश्तों को तब्दील कर देती है उत्पाद में
भावनाओं को तब्दील कर देती है सौदे में
भूमंडलीकरण के अश्व पर सवार होकर घृणा
इतिहास के चेहरे पर कालिख़ पोत देती है
मानवीय मूल्यों का कत्ल करती है
भाई को भाई का दुश्मन बना देती है
भूमंडलीकरण के अश्व पर सवार होकर घृणा
एक प्रान्त को लड़ाती है दूसरे प्रान्त से
एक जाति को दूसरी जाति से
राष्ट्र के भीतर पैदा करने लगती है कई छोटे-छोटे राष्ट्र ।