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भूमि तज चाँद पर है चढ़ा जा रहा / रंजना वर्मा

भूमि तज चाँद पर है चढ़ा जा रहा।
साथ है वक्त के यूँ बहा जा रहा॥

की तरक्की बहुत आज इंसान ने
है अपरिचित सभी से हुआ जा रहा॥

उड़ चला पंख ले आज आकाश पर
भूमि का कर्ज है भूलता जा रहा॥

अब स्वयं को है ज्ञानी समझने लगा
मार्ग कर्तव्य से है हटा जा रहा॥

स्वास्थ्य का मार्ग ही धर्म है बन गया
राह आदर्श की छोड़ता जा रहा॥

डाल जिस पर लिया आसरा है उसे
अपने हाथों से ही काटता जा रहा॥

पीढ़ियों के सुखों की है चिंता इसे
अपना ईमान खोता चला जा रहा॥