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भूमि पर टिकते नहीं हैं पाँव, ऐसा हो गया क्या? / गौरव शुक्ल

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भूमि पर टिकते नहीं हैं पाँव, ऐसा हो गया क्या?
 
रिक्तता वह कौन थी जो आज पूरी हो गयी है,
क्या मिली संजीवनी मेरी निराशा को नयी है?
पट गई दो सेतुओं के मध्य दूरी, आज क्या है,
मुस्कुराहट में छिपा आखिर हमारी राज क्या है?

भर गए सारे पुराने घाव, ऐसा हो गया क्या?
भूमि पर टिकते नहीं हैं पाँव, ऐसा हो गया क्या?

आज कानों में मधुर संगीत-स्वर आया किधर से,
कौन प्राणों में हमारे प्राण भर लाया किधर से?
दिख रही जो स्फूर्ति तन में, स्रोत उसका है कहाँ पर,
उल्लसित है मन अचानक आज आखिर क्या लुटा कर?

बढ़ गए हैं आज मेरे भाव, ऐसा हो गया क्या?
भूमि पर टिकते नहीं हैं पाँव, ऐसा हो गया क्या?

कौन जीवनदान दे मेरी मुमूर्षा को गया है,
दैन्यता का आज निर्वासन हृदय से हो गया है।
वेदना से मुक्ति मुझको यह दिलाने कौन आया,
भार मेरी भावनाओं का उठाने कौन आया?

देखता हूँ स्वयं में बदलाव, ऐसा हो गया क्या?
भूमि पर टिकते नहीं हैं पाँव, ऐसा हो गया क्या?