भूलना तुमको असम्भव / गिरधारी सिंह गहलोत
भूलना तुमको असम्भव है
आजीवन मीत मेरे
दीप जलने से है क्या सम्भव अँधेरा?
चन्द्रोदय से क्या कभी होता सवेरा?
क्या कभी सम्भव कि तुमसे दूर होकर
टूट सकता है तेरी सुधियों का घेरा?
बांध कच्चे क्या कभी
नदियों के तट पर बन सके हैं?
रुक सका है किसके रोके से
पवन मनमीत मेरे?
भूलना तुमको असम्भव है...
मैं तुम्हीं में पूर्णत: लय हो चुका हूँ
अपना सर्वस ज्ञान परिचय खो चुका हूँ
ऋतु सुखद और क्षैत्र भी अनुकूल पाकर
प्रीति फल के बीज अक्षय बो चुका हूँ
अश्रु जो तुमने दिये है
मेरे जीवन की धरोहर
याद आएंगे तुम्हे ये
अश्रु ही बन गीत मेरे
भूलना तुमको असम्भव है...
गान तेरे श्वासों के मैं सुन रहा हूँ
तार टूटे स्वप्नों के मैं बुन रहा हूँ
जिंदगी के पथ में जो बिखरे पड़े हैं
आज उन काँटों को भी मैं चुन रहा हूँ
मानता हूँ बिन तुम्हारे
है नहीं आसान जीना
है डगर सुनसान लेकिन
मग हुए निर्णीत मेरे
भूलना तुमको असम्भव है
आजीवन मीत मेरे