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भूलना था मगर याद आया मुझे / विनोद तिवारी

भूलना था मगर याद आया मुझे
हादसों का नगर याद आया मुझे

राहबर बन के मिलते रहे राहज़न
ज़िन्दगी का सफ़र याद आया मुझे

रास्ते पर बिछे जैसे अंगार थे
तप्त मरुथल में घर याद आया मुझे

जिसके साये में आंगन का गुलज़ार था
नीम का वो शजर याद आया मुझे

जिसने मुड़कर कभी फिर न देखा हमें
शख़्स वो उम्र भर याद आया मुझे