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भूला हुआ नहीं भूला / शिरीष कुमार मौर्य

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मैं राजाओं की शक्ति और वैभव भूल गया
उस शक्ति और वैभव के तले पिसे अपने जनों को नहीं भूला
सैकड़ों बरस बाद भी वे मेरी नींद में कराहते हैं

मैं इतिहास की तारीख़ें भूल गया
अन्‍याय और अनाचार के प्रसंग नहीं भूला
आज भी कोसता हूँ उन्‍हें

मैं कुछ पुराने दोस्‍तों के नाम भूल गया
चेहरे नहीं भूला
इतने बरस बाद भी पहचान सकता हूँ उन्‍हें
तमाम बदलावों के बावजूद

मैं शैशव में ही छूट गए मैदान के बसन्‍त भूल गया
धूप में झुलसते दु:ख याद हैं उनके
वो आज भी मेरी आवाज़ में बजते हैं

बड़े शहरों के वे मोड़ मुझे कभी याद नहीं हुए
जो मंज़िल तक पहुँचाते हैं
मेरे पहाड़ी गाँव को दूसरे कई-कई गाँवों को जोड़ती
हर एक छरहरी पगडण्डी याद है मुझे

किन पुरखे या अग्रज कवियों को कौन-से पुरस्‍कार-सम्‍मान मिले
याद रखना मैं ज़रूरी नहीं समझता
उनकी रोशनी से भरी कई कविताएँ और उनके साथ हुई
हिंसा के प्रसंग मैं हमेशा याद रखता हूँ

भूल जाना हमेशा ही कोई रोग नहीं
एक नेमत भी है
यही बात न भूलने के लिए भी कही जा सकती है

क्‍योंकि बहुत कुछ भूला हुआ नहीं भी भूला

उस भूले हुए की याद बाक़ी है
तो साँसों में तेज़ चलने की चिंगारियाँ बाक़ी हैं
वही इस थकते हुए हताश हृदय को चलाती हैं ।