भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूली हुई शिनाख़्त की परछाइयों में गुम / रमेश तन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKCatTraile

 
भूली हुई शिनाख्त की परछाइयों में गुम
तन्हा खड़ा है कोई मुझे घूरता हुआ

अपने ही ज़हनो-ज़ात कि पस्पाइयों में गुम
भूली हुई शनाख्त की परछाइयों में गुम
ख्वाबो-ख़याल अंजुमन आराइयों में गुम

कांधे को अपनी याद में झंझोड़ता हुआ

 भूली हुई शिनाख्त की परछाइयों में गुम
तन्हा खड़ा है कोई मुझे घूरता हुआ