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भूले स्वाद बेर के / नागार्जुन
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					सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपन खा
बचन बिसर गए गए  देर के सबेर के !
बन गया साहूकार  लंकापति   विभीषण
पा  गए  अभयदान शावक कुबेर  के !
जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए  मुनिगण
हावी हुआ स्वर्थामरिग कंधों पर शेर के !
बुढ्भंस की लीला है, काम के रहे न राम
शबरी न याद रही, भूले स्वाद बेर के !
१९६१ में लिखी गई
 
	
	

